डॉक्टर साहिबा : (वेटर से) दो कोल्ड कॉफी और 🤨....
मैं : नहीं नहीं 😒......दो नहीं एक काॅफी और एक चाय।🤗
डॉक्टर साहिबा : आप भी ना🙄.....ज़रा सा भी बदल नहीं सकते।🧐 मैं काॅफी पियूंगी और आप चाय।🤨🤨
मैं: क्या करें मैडम चाय से ना अपना एक अजीब रिश्ता है।🥰 आज भी गोरखपुर की चाय मुझे😍.....
डॉक्टर साहिबा: अरे बस भी करिए।😏 हजारों बार मैं सुन चुकी हूँ।😴 गोरखपुर की चाय.....गोरखपुर की चाय.......😑😑 न जाने क्या खास है आपके इस गोरखपुरिया चाय में।🙄🙄
मैं: अब पता नहीं खास है भी या नहीं।😌 मगर वह किसी पहली मोहब्बत की तरह है। 🥰 शायद उसे कभी नहीं भुलाया जा सकता।🥺 वह शहर और वहां से मोहब्बत।😘
डॉक्टर साहिबा: कब तक पुरानी चीजों में उलझे रहेंगे।😕 अब आप एक नये शहर में हैं। इस शहर के एनवायरनमेंट के हिसाब से रहिए।🤠🤠
मैं: मगर वो तहज़ीब जो मेरी बुनियाद में है उसका क्या करें डॉक्टर जी😎 वह कोई लिबास नहीं है जिसे शहर-दर-शहर मौसम-दर-मौसम बदल दिया जाए। 😏😏
डॉक्टर साहिबा: मगर यदि हम पुराने ख़्यालात में खुशियां ढूंढते रहे तो फिर नई आबोहवा को पहचान कैसे पाएंगे।🧐🧐 इन्हें भी कभी यादों की सुर्खियों में जीने का मौका मिलना चाहिए।🤓
मैं: अरे वाह..!! आजकल आप बड़ी शायराना होती जा रही हैं।😋😋
डॉक्टर साहिबा: हां.....यह सब कुछ आपके साथ रहते-रहते।😜😜
मैं: ओ...हो....क्या बात। आप भी ढ़लने लगी हैं।😌😌
डॉक्टर साहिबा: अब ढ़लें भी क्यों ना। आपकी बातों में जो खींचती चली जाती हूँ।🤗🤗
मैं: हां....बस खींचकर इतना करीब लाना है कि हमारे दरमियां फासलों को रत्ती भर भी जगह ना मिल पाए।😚😚
डॉक्टर साहिबा: अच्छा जी.....आपकी शायरी खत्म हो गई हो तो मैं चलती हूँ मुझे देर हो रही है।🤪🤪
मैं: ठीक है चलिए....😣😣.
डॉक्टर साहिबा: (आंखों में आंखें डालकर) 😳और हां....इस शहर की आबोहवा में कभी रंगीन मत हो जाइएगा।🤨🤨 आपके कुल्हड़ वाली चाय के अंदाज की तो मैं दीवानी हूँ।❤❤😘
🖋🖋 अभिषेक तन्हा
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