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Thursday, 7 May 2020

व्यंग्य विज्ञान



                  ||  व्यंग्य विज्ञान ||

                 व्यंग्य साहित्य की एक वह विधा है जिसमें उपहास, मज़ाक और इसी क्रम में आलोचना का प्रभाव दिखता है।व्यंग्य का जन्म, समसामयिक विद्रूपताओं से पनपे असंतोष से होता है। एक व्यंग्यकार अपने आसपास की परिस्थितियों का आकलन अलग नजरिए से करता है । कभी व्यंग्यकार जीवन की विसंगतियों को उजागर करता है तो कभी सामाजिक पाखंड को सामने रखने की कोशिश करता है । व्यंग्य के माध्यम से व्यंग्यकार पाठक को सचेत भी करता है । व्यंग में हास्य भी होता है। व्यंग्य की मारक क्षमता काव्य, कहानी एवं अन्य विधाओं से कहीं ज्यादा होता है। इस विधा में विषय बिंदु का चित्रण सीधे-सीधे न होकर घुमावदार तरीके से किया जाता है । व्यंग लेखन में लचकदार और रोचक भाषा शैली की आवश्यकता होती है। व्यंग्य वही कर सकता है जो मानसिक रूप से तीक्ष्ण हो।

हिंदी व्यंग्य का आरंभ, संत-साहित्य की शुरुआत से माना जा सकता है। कबीर व्यंग्य के आदि-प्रणेता हैं। उन्होंने मध्यकाल की सामाजिक विसंगतियों पर व्यंग्यपूर्ण शैली में प्रहार किया है। जाति-भेद, हिंदू-मुस्लिम के धर्माडंबर, गरीबी-अमीरी, रूढ़िवादिता आदि-आदि पर कबीर के व्यंग्य बड़े मारक हैं।
व्यंग्य की परिभाषा और इतिहास में न जाते हुए व्यंग्य लेखन की बात करते हैं।

मेरे अपने अनुभवों के आधार पर मैं कुछ महत्वपूर्ण तत्वों का उल्लेख करना चाहूंगा :-
1. व्यंग्य की शैली
2. व्यंग्य में रोचकता
3. व्यंग्य में रुझान
4. व्यंग्य बाण
5. व्यंग्य में मुहावरा
6. व्यंग्य का केंद्र
7. आरोह अवरोह अलंकार आवृत्ति और प्रकाश
8. मौलिकता
9. सत्यता
10. रचना कौशल

गद्य में व्याकरण को ध्यान में रखकर लिखा जाता है। काव्य कवि के विचारों कुछ नियमों और तुक पर आधारित होता है । मगर व्यंग्य में पाठक पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए और व्यंग्य की शैली पर भी विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए ।

तो आइए अब व्यंग्य के कुछ पहलुओं पर चर्चा करें :-

व्यंग बाण

व्यंग बाण कुछ ऐसे शब्द या कुछ ऐसे वाक्य होते हैं  जो विषय वस्तु पर बार-बार आघात करते हैं । व्यंग्य बाण में मुहावरे भी हो सकते हैं। व्यंग्य बाण की तीक्ष्णता पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए । व्यंग्य में कभी-कभार भाषा शैली ही व्यंग्य बाण बन जाती है। व्यंग्य बाण ऐसा होना चाहिए जो पाठक की मनोदशा को झकझोर कर रख दे।

व्यंग्य जाल

व्यंग्य में व्यंग्य जाल का होना अति आवश्यक है जिससे कि व्यंग्य में रोचकता बनी रहे l सवाल है कि व्यंग्य जाल कैसे बनाया जाए ? तो आपने मकड़ी के जाल को देखा होगा जैसे कुछ गोलाकार कुछ खड़े तारों से बना होता है और मकड़ी केंद्र में होती है ठीक वैसे ही विषय वस्तु को केंद्र में रखकर कुछ गोलाकार भूमिका बनाएं और फिर सभी दिशाओं से व्यंग्य बांण का प्रहार केंद्र पर करें । यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव कहता है ।
व्यंग्य जाल में पाठक को इस तरह से फसाया जाना चाहिए कि उसकी सोच व्यंग्य के केंद्र की तरफ खिंचती चली जाए।  फिर आप पाठक की मनोवृत्ति पर आघात कीजिए और तब तक करते रहिए जब तक उसकी मानसिक गतिविधियां तीव्र ना हो जाएं।
यदि आप हास्य व्यंग्य लिखते हैं तो वहां इसका खास ध्यान रखा जाना चाहिए । प्रहार आप तब तक कीजिए जब तक श्रोता या पाठक की मानसिक गतिविधियां सांसारिक गतिविधियों से बिल्कुल अलग न हो जाएं। जब मात्र व्यंग्य बाण के प्रहार का अनुभव होगा तभी तो पाठक या श्रोता को हंसी आएगी ।


व्यंग्य में नए शब्दों का प्रयोग

व्यंग्य में अक्सर नये शब्दों का प्रयोग किया जाता है । शब्द जिसका पाठक को तनिक भी अंदाजा नहीं होता है । यहां नये शब्दों का यह मतलब नहीं कि आप शब्दों का आविष्कार करने बैठ जायें । जी नहीं नये शब्द से तात्पर्य है वह शब्द जो पढ़ते समय पाठक को अंदाजा ना हो और अचानक से आपके लेख में  आ टपके ।
नया शब्द का बस इतना तात्पर्य है कि पाठक की मनोदशा बदल जाए उस शब्द को पाकर ।

उदाहरण- कवि का अंतर्मन जब छटपटाता है तो उसके काव्यात्मा से नए भाव उभरते हैं ।
यहां छटपटाता व्यंग्य बाण है और काव्यात्मा वह नया शब्द ।


व्यंग्य में मुहावरे का प्रयोग

व्यंग्य में मुहावरे का बहुत बड़ा महत्व होता है कभी- कभार प्रचलित मुहावरे का तो कभी-कभार लेखन कौशल से व्यंग्य के प्रवाह के साथ ही मुहावरे बना दिए जाते हैं ।
मेरे अनुभव की मानें तो व्यंग्य में मुहावरा किसी आस्तीन के सांप की तरह व्यंग्य के ललाट पर कुंडली मारे बैठा होना चाहिए। इस वाक्य में ही आप आस्तीन के सांप को उदाहरण के तौर पर ले सकते हैं । ऐसा करने से पाठक की रोचकता पर बहुत अच्छा और गहरा असर पड़ता है।


व्यंग्य में  प्रवाह

व्यंग्य में निरंतर प्रवाह का होना अति आवश्यक है । और प्रवाह शब्दों के उचित चयन से होता है। जिस प्रकार हम काव्य में एक निरंतर प्रवाह में शब्दों का चयन करते हैं ठीक उसी प्रकार व्यंग्य में भी एक निश्चित प्रवाह की आवश्यकता होती है। यदि प्रवाह ना हो तो आपकी शैली निरर्थक भी हो सकती है ।


व्यंग्य में लयबद्धता

व्यंग्य शैली का लयबद्ध होना भी जरूरी है। ऐसा ना होने से पाठक निराश हो सकता है। यदि आप किसी व्यंग को लयबद्ध तरीके से लिखते हैं तो व्यंग जितनी बार पढ़ी जाएगी उसकी रोचकता ज्यों की त्यों रहेगी। 


व्यंग्य में अलंकार

व्यंग्य में भी कभी-कभार काव्य की तरह अलंकार की आवश्यकता होती है जो व्यंग्य की शोभा बढ़ा देती है । व्यंग्य में अलंकार के लिए हम किसी बिंदु की व्याख्या कई शब्दों से करते हैं ,जो एक दूसरे से लयबद्ध तरीके से जुड़े होते हैं । किसी विषय  बिन्दु पर खास प्रकाश डालने के लिए एक ही वस्तु को कई शब्दों से परिभाषित करते हैं ।


व्यंग्य की घुमावदार शैली

व्यंग्य में हम अक्सर घुमावदार भाषा का ही प्रयोग करते हैं । और यहां घुमावदार से यह बिल्कुल नहीं समझा जाना चाहिए कि भाषा में क्लिष्टता हो। जहां तक सम्भव हो आप अनावश्यक क्लिष्ट शब्दों के प्रयोग से बचें । अपने व्यंग्य में आम बोलचाल के शब्दों का भी उचित स्थान पर प्रयोग करते रहें । हास्य व्यंग्य में तो आम बोलचाल के आड़े तिरछे शब्दों का प्रयोग बढ़ चढ़कर होता है। घुमावदार का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि आप ऐसा लिख दें कि पाठक को समझ में ही ना आए । घुमावदार से सिर्फ इतना तात्पर्य है की व्यंग्य की रोचकता बनी रहे।


लेखक की मनोदशा

व्यंग्य लेखन में लेखक की मनोदशा का एक विशेष दिशा में होना भी जरूरी है। यदि आप किसी व्यथा में हों या आप बहुत खुश हों तो आप अपनी भावनाओं को गद्य रूप दे सकते हैं ,आप अपनी भावनाओं को पद्य रूप दे सकते हैं । मगर मेरा अनुभव  कहता है कि व्यंग्य लिखने के लिए एक विस्तृत मनोदशा का होना जरूरी है व्यंग्य लेखन में लेखक के लिए विस्तृत सोच और व्यापक सोच की जरूरत होती है ।


मैं बार-बार पाठक की बात कर रहा हूं तो बता दूं कि व्यंग्य खास तौर पर पाठक को ध्यान में रखकर लिखा जाना चाहिए । व्यंग्य का मकसद होता है पाठक की मनोदशा को बदलना ।

उम्मीद है कि आप व्यंग्य के बारे में समझ गए होंगे, और अब ज्यादा विस्तार ना करते हुए मैं इस लेख को विराम देना चाहूंगा ।
आप सभी पाठकों एवं लेखक बंधुओं से अनुरोध है कि यदि लेख में कोई त्रुटि हो तो उस से मुझे अवगत जरूर कराएं।

संपूर्ण लेख मेरे अनुभव पर आधारित है अतः  गलती होने की संभावनाएं भी है ।
इस लेख का कोई तथ्य यदि किसी अन्य लेख से मिलता-जुलता हो तो उसे महज एक इत्तेफाक समझा जाना चाहिए ।


---------- अभिषेक तन्हा 

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