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Monday, 18 May 2020

|| लेखन की आग ||

                 
          आप गरीब हों अमीर हों कामकाजी हों या फिर निठल्ले हों जैसी भी हों जिन भी परिस्थितियों में हों आपको भूख लगेगी। भूख की टीस मिटाने के लिए सभी कुछ ना कुछ जरूर खाएंगे। आप आराम से खाएं, जल्दीबाजी में खाएं ,जैसे भी खाएंगे, जो भी खाएंगे मगर आप खाएंगे जरूर । रईस हैं तो कुर्सी मेज पर बैठकर खाएंगे , गरीब हैं तो एक हाथ में रोटी दूसरे हाथ में मिर्ची लेकर खाएंगे, कुल मिलाकर भूख है तो खाना ही पड़ेगा।

ठीक इसी तरह यदि आपके अंदर लेखन की आग दहकती है तो आप लिखेंगे जरूर। परिस्थितियां अनुकूल हों या प्रतिकूल हों जैसी भी हों यदि लेखन की चिंगारी है तो वह इंसान लिखेगा ।

एक लेखक खुशियों में भी दो पल के लिए खुद को संभाल कर गंभीरता से खुशियों का चित्रण करता है। यदि गम में हो, दु:खों का पहाड़ भी क्यों न टूट जाए उन विपरीत परिस्थितियों में भी खुद को सजग करके एक गहरी सांस लेता है और वहां उस सांस की उष्मा में उसकी लेखन पनपती है और बेबसी से बाहर निकल आती है।

बस्ती में आग भी लग जाए तो एक लेखक अफरा-तफरी के बीच दो पल के लिए ठहर जाता है ।आग की लपटें, भागते चीखते-चिल्लाते लोगों को, आग की गरमाहट को महसूस करता है, विध्वंसक दृश्य को देखता है । फिर कभी कहीं किसी कहानी में अपने अनुभवों को संजोता है।

धरती पर प्रलय आ जाए, सब कुछ नष्ट होने के कगार पर हो फिर भी एक लेखक कहीं कोने में दुबक कर लिखता मिलेगा। अधूरी कहानी में यदि उसकी मृत्यु हो जाए यदि उसका मृत शरीर पिघल जाए फिर भी प्रलय के कहानी की आकृतियां उसकी अस्थियों पर दिखेंगी।

यदि एक कवि की काव्यात्मा में काव्याग्नि दहकती है, तो कविता जरूर लिखेगा। मसलन उसकी कलम तोड़ दी जाए, पलटकर कविता पर स्याही क्यों ना बिखेर दी जाए, फिर भी स्याही का रंग बदल कर कविता लिखेगा लेकिन लिखेगा जरूर।
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🖋 अभिषेक तन्हा
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