Sunday, 26 April 2020

तकलीफ़ें



इस लेख को लिखा है कवित्री संगीता सिंह जी ने । 



        कैसा लगता है जब दुनियाँ वाले बिना किसी का सच जाने उसके प्रति अपनी राय बना लेते हैं। उसके हिस्से की तकलीफ सुने बिना उसे दोषी करार दे देते हैं।

      हाँ....! समाज में रहना है, इसलिए उसके सामने तो कुछ नहीं कहते ।  लेकिन इसी समाज का हिस्सा है, इसलिए किसी के प्रति कोई धारणा बना लेना गलत भी नहीं समझते।

      एक स्त्री की तकलीफ़ें तो कुछ कह देने भर से शायद दूर भी हो जाएं । पर एक पुरुष जो कि एक सामान्य जिंदगी की चाहत रखता हो ,जो चाहता हो कि उसके किसी असमान्य कार्य से किसी की जिंदगी प्रभावित ना हो उसके भीतर कितनी कुंठा भरी हो सकती है । और किस कदर वो खुद को बेबस और लाचार समझ बैठता है इसका अंदाजा शायद ही कोई लगा सकता है....।

   🖋🖋 Sangeeta Singh

Follow Sangeeta singh on Instagram
Click here:-  Sangeeta singh


PC @  From Instagram



काव्याग्नि
The fire of poetry..... The brand of poetry......... The quality of poetry....
Poetry blog by Abhishek Tanha Follow me for such poetry. Like, support and share

No comments:

Post a Comment