|| नादान इश़्क ||
इश्क ही नादान था या नादानी में इश्क हुआ
कमबख़्त यह इश्क बड़ा बेईमान होता है ।
हंसकर अभी उनसे बात भी खूब होती हैं
मगर हिज्र में अक्सर अश्क बदनाम होता है ।
मासूमियत देखकर मासूमियत से मिल गए थे
मगर हुस्न का नशा भी बहुत बेकार होता है ।
हवायें भी मुझसे कहतीं हैं अब मिला ना करो
दिल है कि मुलाकात के लिए बेकरार होता है ।
दिललगी में तुम्हारे वफ़ा की कसमें तो हजारों थीं
मुलाकात से पता चला हर शख्स़ बेवफ़ा होता है।
🖋🖋🖋 अभिषेक तन्हा
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इश्क ही नादान था या नादानी में इश्क हुआ
कमबख़्त यह इश्क बड़ा बेईमान होता है ।
हंसकर अभी उनसे बात भी खूब होती हैं
मगर हिज्र में अक्सर अश्क बदनाम होता है ।
मासूमियत देखकर मासूमियत से मिल गए थे
मगर हुस्न का नशा भी बहुत बेकार होता है ।
हवायें भी मुझसे कहतीं हैं अब मिला ना करो
दिल है कि मुलाकात के लिए बेकरार होता है ।
दिललगी में तुम्हारे वफ़ा की कसमें तो हजारों थीं
मुलाकात से पता चला हर शख्स़ बेवफ़ा होता है।
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Poetry blog by Abhishek Tanha
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वाह...����
ReplyDeleteधन्यवाद🙏
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