Sunday, 26 April 2020

"नादान इश़्क"

         ||  नादान इश़्क  ||

इश्क ही नादान था या नादानी में इश्क हुआ
कमबख़्त यह इश्क बड़ा बेईमान होता है ।

हंसकर अभी उनसे बात भी खूब होती हैं
मगर हिज्र में अक्सर अश्क बदनाम होता है ।

मासूमियत देखकर मासूमियत से मिल गए थे
मगर हुस्न का नशा भी बहुत बेकार होता है ।

हवायें भी मुझसे कहतीं हैं अब मिला ना करो
दिल है कि मुलाकात के लिए बेकरार होता है ।

दिललगी में तुम्हारे वफ़ा की कसमें तो हजारों थीं
मुलाकात से पता चला हर शख्स़ बेवफ़ा होता है।

🖋🖋🖋 अभिषेक तन्हा

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