Wednesday, 29 April 2020

"प्रेम की ललक : भाग 3"


प्रेम की ललक : भाग 3


श्यामदेव ने पुष्पिता के पत्र को बड़े प्यार से अपने जेब में रखा । कालेज से घर जाते वक्त रास्ते भर जेब में हाथ डालकर पत्र को मुठ्ठियों में जकड़ कर रखा, क्योंकि वह महज एक कागज का टुकड़ा नहीं था । उस कागज में पुष्पिता का प्रेम और उसके स्पर्श का एहसास था ।
घर पहुंचते ही श्यामदेव की मां ने कहा: "आज बहुत जल्दी आ गए"।
"हां मां"।
इतना कहकर अपने कमरे में चला गया।
मुस्कुराते हुए श्यामदेव ने पत्र को खोला।

प्यारे पगलू,
आदतन हर रोज की तरह आज भी ख़त लिख रही हूं। उम्मीद करूंगी कि तुम जवाब भी जल्द ही दोगे
। मैंने एक बार कह क्या दिया कि तुम्हारी लिखावट अच्छी नहीं है, इसका मतलब तुम ख़त लिखना छोड़ दोगे। लिखावट नहीं पगले ख़त में मैं तुम्हारा प्रेम पढ़ती हूं। तुम भी तो मेरे लिए इतना कुछ करते हो। तुम्हारी लिखावट ही तो गंदी है। इतना तो मैं झेल ही सकती हूं, मेरे श्याम ,मेरे कृष्ण, मेरे कान्हा ,मेरे पगले जी। हां....!! अब आगे से खत लिखना मत भूलना। दशहरे वाला दिन याद दिला दूंगी और हाँ..अबकी रूठ गई तो गई तो लाख मना लेना नहीं मानूंगी।
और मेरी कलाई इतनी जोर से मत पकड़ा करो। याद है ना पिछली बार मैं मां की चूड़ी पहनकर आई थी, वह तुम्हारे धरपकड़ में में टूट गई। लेकिन लाख चूड़ियां टूट जाएं फिर भी तुम मेरी कलाई हमेशा पकड़े रखना। प्रेम के इसी स्पर्श को तो मैं सुबह से शाम तक महसूस करती हूं। 
 अरे.....!! मैं भी ना कुछ भी लिखते जाती हूं...., बिल्कुल पागलों की तरह।
पता है आज क्या हुआ। आज मां मुझपर गुस्सा हो गईं थीं। कल जब तुम घर के बाहर सड़क पर खड़े थे, मां ने छत से देख लिया था। सुबह-सुबह ही मेरे ऊपर चिल्लाने लगी हैं। सबसे ज्यादा दु:ख तब हुआ, जब गुलशन ने भी मां के साथ मुझे बहुत कुछ बुरा-भला कहा। अब तुम ही बताओ भला अपनी बड़ी बहन को कोई ऐसे भी बोलता है क्या ? खैर, यह सब बातें छोड़ो, मैं मिलकर बताऊंगी।
तुम अपना ख्याल रखना और कालेज में मिलने वक्त पर आया करो। अगली बार से मैं इंतजार नहीं करूंगी। और अपने उन आवारा दोस्तों के साथ मत रहा करो।
जब भी वक्त मिलेगा तुम्हारे लिए परांठे बना कर लाऊंगी। बस तुम यूं ही मिलते रहना। यूँ ही प्रेम करते रहना।
तुम्हारी,
पगली।
श्यामदेव ने बड़े प्यार से ख़त को बिस्तर के नीचे सहेज कर रख दिया।


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Tuesday, 28 April 2020

कालेज BBD डिपार्टमेंट फार्मेसी



                 कालेज BBD डिपार्टमेंट फार्मेसी



           बीबीडी का जिक्र कभी और करेंगे। मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही बाई तरफ गणेश भगवान के मंदिर के सामने नतमस्तक होकर सीधी चलते हैं गोलाकार चौराहे पर। इस चौराहे को कहते हैं PMC. PMC यानी "पिया मिलन चौराहा"। अब इसे PMC क्यों कहते हैं, इसका भी जिक्र कभी और करेंगे।
     
         चलते हैं PMC की दाईं तरफ वाली इमारत में। इसमें है एनआईआईटी का फार्मेसी डिपार्टमेंट। यहां के शिक्षकों का मानना है कि इस डिपार्टमेंट के छात्र कालेज के अन्य छात्रों से अलग है। अब भला होंगी भी क्यों नहीं, इस डिपार्टमेंट के छात्र रोज मास्टरों का खौफनाक चेहरा जो देखते हैं। इस डिपार्टमेंट के छात्रों को कालेज के अन्य डिपार्टमेंट के छात्रों से मिलने पर , दोस्ती करने पर, व्यहार बनाने पर सख्त मनाही है।

          यदि आप बड़े तहजीब और अदब के साथ भी टीचर्स के चैंबर में घुस गए , तो सारी शिक्षिकाएं ऐसे घूर कर देखेंगे जैसे आपने इनकी गोपनीयता भंग कर दी हो। गलती छोटी हो या बड़ी डांट आपको उतनी ही सुननी पड़ेगी जितना इनके डेटाबेस में है।

         यहाँ अनुशासन हमेशा सातवें आसमान पर रहता है। अनुशासन का अंदाजा बस इसी से लगा लीजिए कि गलियारे में चाह कर भी आप अपने सहपाठी से उसका हालचाल नहीं पूछ सकते। लेक्चर के बीच में यदि आप की कलम रुक गई तो आप निठल्ले बैठे रहिए। क्योंकि यदि प्रवक्ता ने कलम उधार लेते देख लिया तो आपके लिए यह महंगा पड़ सकता है। आप की छवि खराब हो सकती है। आपका भविष्य चौपट हो सकता है। आपका सत्यानाश हो सकता है। आपका सर्वनाश हो सकता है। आप का विनाश हो सकता है। आपके संपुर्ण अवशोषित ज्ञान का लंका दहन हो सकता है।

      समय की पाबंदी का पहाड़ा सीखना हो तो इस डिपार्टमेंट का एक बार चक्कर लगा लीजिए। पूरे कालेज में जहां एक घंटे का लंच ब्रेक मिलता है वहीं इस डिपार्टमेंट में उस एक घंटे में से पंद्रह मिनट की कटौती करके शिक्षा के गुणवत्ता को निखार जाता है। पूरा कालेज शाम पांच बजे खाली हो जाता है। लेकिन इस डिपार्टमेंट के छात्र पंद्रह मिनट बाद ज्ञान अवशोषित करके आजाद परिंदों की तरह खुली आबोहवा में गहरी सांस लेते हुए आलीशान इमारत से बाहर निकलते हैं। यदि आप कक्षा के लिए एक मिनट देर हो जाते हैं तो यहां एक अनोखी सजा मिलती है। इस जघन्य अपराध के लिए छात्र गलियारे से ही पूरी कक्षा की नुमाइश करता है। अंदर नहीं आने दिया जाता क्योंकि शिक्षकों को धौंस जमांनी है और बाहर नहीं जाने दिया जाता क्योंकि डिपार्टमेंट की छवि बनानी है।

         एक और अनोखे तथ्य से अवगत कराता हूं। वह है यहां का ड्रेस। यदि आपको किसी भी कार्य से जाना हो तो बिना ड्रेस के आपको पहचान पत्र से भी पहचानने से इंकार कर दिया जाएगा। इस डिपार्टमेंट के छात्रों को सलाह देना चाहूंगा कि कालेज से डिग्री मिलने के बाद भी ड्रेस को सहेज कर रखें। ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि यदि भविष्य में आप अपने बच्चों को अपना कालेज दिखाने लाते हैं तो ड्रेस पहन कर आना जरूरी है। अपने ड्रेस के साथ आएंगे तभी आवेदन शुल्क के साथ आपके भ्रमण आवेदन पत्र पर कार्यालय की मुहर लगेगी।

        तो चलिए आप भी कालेज BBD डिपार्टमेंट फार्मेसी को लखनवी अंदाज नवाबी तहज़ीब में सलाम किजिए ।

🖋🖋🖋 अभिषेक तिवारी तन्हा

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Sunday, 26 April 2020

तकलीफ़ें



इस लेख को लिखा है कवित्री संगीता सिंह जी ने । 



        कैसा लगता है जब दुनियाँ वाले बिना किसी का सच जाने उसके प्रति अपनी राय बना लेते हैं। उसके हिस्से की तकलीफ सुने बिना उसे दोषी करार दे देते हैं।

      हाँ....! समाज में रहना है, इसलिए उसके सामने तो कुछ नहीं कहते ।  लेकिन इसी समाज का हिस्सा है, इसलिए किसी के प्रति कोई धारणा बना लेना गलत भी नहीं समझते।

      एक स्त्री की तकलीफ़ें तो कुछ कह देने भर से शायद दूर भी हो जाएं । पर एक पुरुष जो कि एक सामान्य जिंदगी की चाहत रखता हो ,जो चाहता हो कि उसके किसी असमान्य कार्य से किसी की जिंदगी प्रभावित ना हो उसके भीतर कितनी कुंठा भरी हो सकती है । और किस कदर वो खुद को बेबस और लाचार समझ बैठता है इसका अंदाजा शायद ही कोई लगा सकता है....।

   🖋🖋 Sangeeta Singh

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"नादान इश़्क"

         ||  नादान इश़्क  ||

इश्क ही नादान था या नादानी में इश्क हुआ
कमबख़्त यह इश्क बड़ा बेईमान होता है ।

हंसकर अभी उनसे बात भी खूब होती हैं
मगर हिज्र में अक्सर अश्क बदनाम होता है ।

मासूमियत देखकर मासूमियत से मिल गए थे
मगर हुस्न का नशा भी बहुत बेकार होता है ।

हवायें भी मुझसे कहतीं हैं अब मिला ना करो
दिल है कि मुलाकात के लिए बेकरार होता है ।

दिललगी में तुम्हारे वफ़ा की कसमें तो हजारों थीं
मुलाकात से पता चला हर शख्स़ बेवफ़ा होता है।

🖋🖋🖋 अभिषेक तन्हा

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"तुम्हारे प्रेम का प्रतीक"

 ❤❤तुम्हारे प्रेम का प्रतीक❤❤

वर्षों की तड़प और मौन को चीरता हुआ
अधरों पर तुम्हारे प्रेम का एक नाजुक स्पर्श
ज़रा शरमाते हुए करीब आना पलकें झुकाना
और मुस्कुरा कर यूँ बालों से चेहरा ढ़कना
नि:शब्द सब कुछ बयां करने की आदत
ये सब कुछ तुम्हारे प्रेम का प्रतीक है।

तुम देखना चाहती हो और भी करीब से
मगर नज़रें कुछ पल के लिए ही टिकते हैं
अब तक भला तुम्हारे हाथ कांपते हैं
अपनी हथेलियों में मुझे जकड़ने से
आज तक भोलापन गालों पर झलकती है
ये सब कुछ तुम्हारे प्रेम का प्रतीक है।

🖋🖋🖋 अभिषेक तन्हा..

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"प्रिये एक नज़्म लिखते हैं"

  "प्रिये एक नज़्म लिखते हैं"

चलो प्रिये एक नज़्म लिखते हैं...!!!
तुम मुस्कुरा कर जुल्फें झटक देना
मैं जुल्फों में उलझ कर ठहर जाऊँगा ।
मैं अल्फ़ाज़ पिरोता रहूंगा
तुम तख्तीअ करना।

Wednesday, 22 April 2020

भड़कनामा - दबंगई से लिखिए





                         ll दबंगई से लिखिए ll


          सभी कवियों को मेरा प्रणाम 🙏। कवित्रीयों को थोड़ा कम मगर उनकी नारी शक्ति को शत-शत, दंडवत एवं साष्टांग प्रणाम।🙏🙏 जो ना कवि हैं ना ही कवित्री हैं उन सभी कवि-त्री-त्रा को तीन हाथ की दूरी से सलाम ।😏😏

          आप सभी कवियों से विनम्रता की चोटी पर चढ़कर अनुरोध है😍 कि आप कविताओं को नए आयाम पर ले चली।🤨🤨 बाहर से चवन्नी भर ऊपर उठकर लचकदार कविताएं लिखिए । 😜 भावनाओं और संवेदनाओं को शब्दब्ध मत किजिए।😛 अब वक्त है संवेदनाओं को घुसपैठिया, हल्लाबोल, चिल्लमखोर तरीके से उतरने की l😎😎 मुद्दावादी कविता छोड़ सरपट, भागमभाग , फटफटेदार, फर्राटेदार , झंनाटेदार,भड़भड़िया, तड़तड़िया, चटपटा, चट्टमखोर कविताएं लिखिए l🖋🖋🖋

        वह कवि जो क्लिष्टता के पहाड़ पर चढ़ने को कविता कहते हैं 😒उन कवियों को गलादबोच तरीके से कहना चाहूंगा कि अब खूंटागाड़ शब्दों का प्रयोग छोड़ें l🧐🧐 तड़कता-भड़कता ,चमकता-मटकता ,गढ़-गढ़ तड़-तड़, भड़-भड़, पड़-पड़, नटखट शब्दों का प्रयोग करें l🤣🤣 ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि डिमांड में है l🐒🐒

     शब्दों को पकड़िए शब्दों को रगड़ीये , शब्दों को निचोड़िये, शब्दों का विच्छेद कीजिए ,शब्दों को अनुलोम विलोम कराइए l😝😝 फिर उसे कविता में ठोंकिए l🔨🔨
 प्रेम रस के कविताओं पर वियोग रस का माल्यार्पण कतई मत कीजिए l🤪🤪 ऐसे ढक्कनदार कवियों को मैं नए प्रेम को तलाशने की सलाह दूंगा l🤓🤓

    अब एकदम दबंगई से लिखिए l🤠🤠 कविताएं ह्रदयचुंबी नहीं है फ़ेफड़चुंबी लिखिए l 🥰🥰

        यदि आपको लेख पढ़कर हंसी आ रही है तो आप एकदम निर्लज्ज कवि हैं l🥵 यदि आप मुझे गरिया रहे हैं😠 तो आपको शुद्ध शाकाहारी ब्राह्मण का श्राप लग जाएl🤪l आपकी कलम फफ़ा जाए l😝😝 स्याही बौखला कर छितरा जाए l😌 आपकी कविता लिपा जाएl😉l सत्यानाश हो जाए l🥴


     व्यंग है ....!!🤐 व्यंग को व्यंग की तहज़ीब-ओ-तरीके से पढ़ियेगा l🤫🤫 नहीं तो मैं भी मनबढ़ कवि हूंl😋😋l एक व्यंग्यदार धरचमाट आपके कविता के कनपटी पर चस्पा कर दूंगा l 😝😝😝

             🖋🖋---- अभिषेक तन्हा


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गलियारे में इश्क़बाज़ी




                 ll गलियारे में इश्क़बाज़ी ll

             बात उन दिनों की है जब हम सभी गोरखपुरिया दोस्त रामनगर कॉलोनी की एक पीजी में रहा करते थे l बक्शीपुर चौराहे के उत्तर दिशा में एक छोटा सा मोहल्ला है जिसे रामनगर के नाम से जाना जाता है l गलियारे की एक तरफ रामनगर है और दूसरी तरफ है अलीनगर l ठीक यहीं गलियारे के पास ही हमारा कमरा था l आधे गलियारे में लगभग पांच फीट गहरा, तीन या चार फीट चौड़ा एक नाला है l और लगभग इतना ही लोगों के आने-जाने के लिए रास्ता होगा l गलियारे में स्ट्रीट लाइट भी नहीं है लोगों का आवागमन भी बहुत कम होता है l सुबह से शाम तक लगभग सुनसान रहता है l
         
           यह गली दो मोहल्लो को कम आशिकों को ज्यादा जोड़ती है l बक्शीपुर के आसपास के स्कूल-कालेज के आशिकों के मोहब्बत की पहली स्पर्श की शुरुआत शायद यहीं से होती है l हम सभी दोस्त भी अपने कमरे की खिड़की से जरा सा पर्दा हटाते थे और मोहब्बत का नजारा चुपचाप देखा करते थे l प्रेमी आते और बाहों में जकड़ कर अपनी मोहब्बत का इजहार किया करते थे l कभी किसी के आने की भनक मिलते ही दोनों एक-दूसरे के विपरीत ऐसे चलने लगते जैसे एक दूसरे को जानते ही नहीं हैं l
       
        नौजवानों की हरकतें तो लाज़मीं हैं, मगर इस कारनामे में हम लोगों ने 40-50 साल के इश़्कबाजों को भी इश्क़बाज़ी करते देखा है l आपको यकीन नहीं हो रहा होगा मगर यह सच है l

              मुझे तो लगता है गलियारे से गुजरने वाले लोगों में नहीं इश्क़ गलियारे में ही है l
       ऐसा भी हो सकता है इस गलियारे में किसी प्रेमी की रूह भटकती है जो यहां से गुजरने वाले को इश्कबाज बना देती है l

                   ------ अभिषेक तन्हा



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Tuesday, 21 April 2020

अस्थियों से हिंदूस्तान लिख देना

     ll  अस्थियों से हिंदूस्तान लिख देना  ll



बेशक  मुझे इतिहास में  तुम नादान लिख देना
मर जाऊँ तो मेरी अस्थियों से हिंदूस्तान लिख देना l

मेरा सब कुछ इसी मिट्टी की उपज है,
तिनका तिनका वतन के नाम लिख देना।

यूँ मनुष्य जाति बांट कर खून खराबा क्यूँ?
हिंदू या मुस्लिम नहीं सभी को इंसान लिख देना।

हरवक्त यूँ गफ़लतों को सियासत में रौंदते क्यूँ हो 
तिमिर की हथेली पर भी उसका इमान लिख देना l

आईनें में कब तलक 'तन्हा' जुल्म देखा जायेगा
उन अदालतों की दिवारों पर भी बेइमान लिख देना l

           ------ अभिषेक तन्हा


Friday, 10 April 2020

खुदा से पूछना है


               खुदा से पूछना है

खुदा से पूछना है इनके गुनाहों की सज़ा क्या है
कम्बख़्त कोई तो बताये दरिंदों की रज़ा क्या है l

ज़नाब फ़ख़्र क्यों दौलत का शोर-शराबा है अभी
कोई बताये जऱा मुझे दौलतमंद की वफ़ा क्या है l

ज़ुल्म की ज़ुल्मत में आखिर कब तलक रहेंगे
खुदा से पूछना है इस ज़ुल्म की सज़ा क्या है l

ताउम्र अकेलेपन में मैं आईने से बातें करता रहूँ
खुदा ने वो शख्स़ बनाया नहीं मेरी ख़ता क्या है l


                  ----- अभिषेक तन्हा